Poetic-Verses
गीति-संगीति / महेंद्रभटनागर
गीति-संगीति
[महेंद्रभटनागर]
गीति-क्रम
1   गाओ
2   स्वर्ण की सौगात
3   भोर का गीत
4   माँझी
5   एक रात
6   कौन तुम
7   गीत में तुमने सजाया
8   मुसकुराए तुम
9   हे विधना
10   उषा रानी
11   सुहानी सुबह
12   स्वागत
13   लघु जीवन
14   फाग
15   होली
16   समता का गान
17   आओ जलाएँ
18   वर्षा
19   दीप जलाओ
20   दीप-माला
21   अभिषेक
22   दीप धरो
23   रूपासक्ति
24   मोह-माया
25   रात बीती
26   अगहन की रात
27   दूर तुम
28   पिया से
29   बिरहिन
30   प्रतीक्षा
31   साध
32   स्नेह भर दो
33   रतजगा
34   वंचना
35   अब नहीं ...
36   भोर होती है
37   कौन हो तुम
38   तुम
39   मत बनो कठोर
40   किरण
41   चाँद से
42   चाँ सोता है
43   कौन कहता है ...
44   बसंत
45   आ गया सावन
46   मेघ और शशि
47   निवेदन
48   चाँदनी में
49   ज्योत्स्ना
50   बुरा क्या किया था
51   कोई शिकायत नहीं
52   विरह का गान
53   धन्यवाद
54   छा गये बादल
55   नींद
56   दीप जला दो
57   आकुल-अन्तर  
58   मेरा चाँद
59   अमावस की अँधेरी में
60   मिल गये थे
61   अकारथ
62   विवशता
63   आकर्षण
64   चाँद और पत्थर (1)
65   चाँद और पत्थर (2)
66   न जाने क्यों
67   साथ
68   दुराव
69   यह न समझो
70   तुम से मिलना तो ...
71   आत्म-सवीकृति
72   आँसुओं का मोल
73   बहने देना
74   विनाश
75   विकास
76   रस-संचार
77   री हवा
78   रात
79   हेमन्त
80   घटाएँ
81   गाओ गीत
82   तुम
83   तुम्हारी माँग का कुंकुम
84   तुम्हारी याद
85   याद
86   सहसा
87   प्रतीक्षा में
88   परिणाम
89   कामना
90   अप्रतिहत
91   न रुकते चरण
92   मूरत अधूरी
93   असह
94   मजबूर
95   सहारा
96   जीवन नहीं
97   हमें यह पता है
98   साथी
99   यह नहीं मंज़िल
100   स्वर-साधना
101   भोर
102   प्राण-दीप
103   परिचय
104   ज्योति-पर्व
105   ज्वार और नाविक
106   जिजीविषा
107   अपराजित
108   नव-निर्माण
109   बढ़ते चलो
110   विश्वास
111   अंध-काल
112   जागते रहना
113   सुर्खियाँ निहार लो
114   युग-विहग
115   स्थितियाँ और द्वन्द्व
116   बदलता युग
117   कहाँ अवकाश
118   विश्व-श्री
119   जनतंत्र-आस्था
120   गणतंत्र
121   प्रण
122   चाह
123   शीतार्द्र
124   नयी ज़िन्दगी
125   राग-संवेदन
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(1) गाओ
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गाओ कि जीवन - गीत बन जाये !
.
हर क़दम पर आदमी मजबूर है,
हर रुपहला प्यार-सपना चूर है,
आँसुओं के सिन्धु में डूबा हुआ
आस-सूरज दूर, बेहद दूर है !
    गाओ कि कण-कण मीत बन जाये !
.
हर तरफ़ छाया अँधेरा है घना,
हर हृदय हत, वेदना से है सना,
संकटों का मूक साया उम्र भर
क्या रहेगा शीश पर यों ही बना ?
    गाओ, पराजय - जीत बन जाये !
.
साँस पर छायी विवशता की घुटन,
जल रही है ज़िन्दगी भर कर जलन,
विष भरे घन-रज कणों से है भरा
आदमी की चाहनाओं का गगन,
    गाओ कि दुख - संगीत बन जाये !
.
(2) स्वर्ण की सौगात
.
स्वर्ण की सौगात लायी भोर !
.
री जगो कलियो ! उठो, उपहार आँचल में भरो,
सज सुनहले रूप में, मधु भाव पाटल में भरो,
  भर नया उन्मेष अंगों में
  झूम लो नव-नव उमंगों में
  गंधवह शीतल तरंगों में
    प्रीति-पुलकित हर लता चितचोर !
.
खोल दो अन्तर झरोखे - द्वार - वातायन सभी,
अब नहीं, ऐसे अँधेरे में घिरे आनन कभी,
  स्वर्ण-सागर में नहाओ रे
  आभरण से तन सजाओ रे
  नव प्रभाती गीत गाओ रे
    झमझमा कर नाच ले मन-मोर !
.
(3) भोर का गीत
.
भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी !
.
जब गिरी तन पर नवल पहली किरन
हो गया अनजान चंचल मन - हिरन,
प्रीत की भोली उमंगों को लिए
लाज की गद - गद तरंगों को लिए
प्रात की शीतल हवा आ, अंग सुरभित कर गयी !
.
प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी
स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी,
झूमती डालें पहन नव आभरण,
हर्ष - पुलकित किस तरह वातावरण,
भर सुनहरा रंग, ऊषा कर गयी वसुधा नयी !
.
(4) माँझी  
.  
साँझ की बेला घिरी, माँझी !
.
अब जलाया दीप होगा रे किसी ने
    भर नयन में नीर,
और गाया गीत होगा रे किसी ने
    साध कर मंजीर,
मर्म जीवन का भरे अविरल बुलाता
    सिन्धु सिकता तीर,
स्वप्न की छाया गिरी, माँझी!
.
दिग्वधू-सा ही किया होगा किसी ने
    कुंकुमी शृंगार,
झिलमिलाया सोम-सा होगा किसी का
    रे रुपहला प्यार,
लौटते रंगीन विहगों की दिशा में
    मोड़ दो पतवार,
सृष्टि तो माया निरी, माँझी !
.
(5) एक रात
.
अँधियारे जीवन - नभ में
बिजुरी-सी चमक गयीं तुम !
.
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम !
.
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम !
.
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-सी झमक गयीं तुम !
.
तुलसी-चैरे पर आ कर
अलबेली छमक गयीं तुम !
.
सूने घर - आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम !
.
(6) कौन तुम . .
.
कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो ?
.
    लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
    मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
    दे दिया संसार सोने का सहज
    जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो ?
.
    वीथियाँ सूने हृदय की घूम कर,
    नव-किरन-सी डाल बाहें झूम कर,
    स्वप्न-छलना से प्रवंचित प्राण की
    चेतना मेरी जगायी चूम कर,
कौन तुम नभ-अप्सरा-सी इस तरह बहका गयी हो ?
.
    रिक्त उन्मन उर-सरोवर भर दिया,
    भावना संवेदना को स्वर दिया,
    कामनाओं के चमकते नव शिखर
    प्यार मेरा सत्य शिव सुन्दर किया,
कौन तुम अवदात री ! इतनी अधिक जो भा गयी हो ?
.
(7) गीत में तुमने सजाया . .
.
गीत में तुमने सजाया रूप मेरा
मैं तुम्हें अनुराग से उर में सजाऊँ !
.
रंग कोमल भावनाओं का भरा
है लहरती देख कर धानी धरा
नेह दो इतना नहीं, सभँलो ज़रा
  गीत में तुमने बसाया है मुझे जब
  मैं सदा को ध्यान में तुमको बसाऊँ !
.
बेसहारे प्राण को निज बाँह दी
तप्त तन को वारिदों-सी छाँह दी
और जीने की नयी भर चाह दी
  गीत में तुमने जतायी प्रीत अपनी
  मैं तुम्हें अपना हृदय गा-गा बताऊँ !
.
(8) मुसकराए तुम . .
.
मुसकराए तुम, हृदय-अरविन्द मेरा खिल गया !
देख तुमको हर्ष गदगद, प्राप्य मेरा मिल गया !
.
चाँद मेरे ! क्यों उठाया
इस तरह जीवन-जलधि में ज्वार रे ?
पा गया तुममें सहारा
कामिनी ! युग-युग भटकता प्यार रे !
आज आँखों में गया बस, प्रीत का सपना नया !
.
रे सलोने मेघ सावन के
मुझे क्यों इस तरह नहला दिया ?
क्यों तड़प नीलांजने !
निज बाहुओं में नेह से भर-भर लिया ?
साथ छूटे यह कभी ना, हे नियति ! करना दया !
.
(9) हे विधना
.
हे विधना ! मोरे आँगन का बिरवा सूखे ना !
.
यह पहली पहचान मिठास भरा
रे झूमे लहराये रहे हरा
हे विधना ! मोरे साजन का हियरा दूखे ना !
.
लम्बी बीहड़ सुनसान डगरिया
रे हँसते जाये बीत उमरिया
हे विधना ! मोरे मन-बसिया का मन रूखे ना !
.
कभी न जग की आँख लगे
साँसत की अँधियारी दूर भगे
हे विधना ! मोरे जोबन पर बिरहा ऊखे ना !
.
(10) उषा रानी
.
नील नभ-सर में मुदित मुग्धा उषा रानी नहाती है !
.
शशि-बंध में बँध, रात भर आसव पिया
प्रतिदान जिसका प्रीति पावन से दिया
नव अंगरागों से जगत सुरभित किया
सोच हेला-हाव, अरुणिम तार रेशम के बहाती है !
.
नव रंग सरसिज के भरे जिसका वदन
परितोष भावों को किये जैसे वहन
प्रिय कल्पना में मंजु मंगल मन मगन
रे अकारण हर दिशा सीकर उड़ा कर गहगहाती है !
.
(11) सुहानी सुबह
.
जीवन की हर सुबह सुहानी हो !
.
भर लो हास बहारों का
नदियों कूल कछारों का
फूलों गजरों हारों का
कन-कन की हर्षान्त कहानी हो !
.
मीठा राग विहंगों का
पागल प्रेम उमंगों का
अन्तर लाज तरंगों का
छलिया दु&
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